त्रयोदशी ब्रत
त्रयोदशी व्रत प्रत्येक वर्ष मे 12 से 13 बार आने वाला मासिक व्रत का त्यौहार है, इसीलिए इस व्रत को मासिक शिवरात्रि भी कहा जाता है। जोकि अमावस्या से पहले कृष्णपक्ष की त्रियोदशी के दिन आता है। मासिक शिवरात्रियों में से दो पर्व सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं, प्रथम फाल्गुन त्रियोदशी महा शिवरात्रि के नाम से प्रसिद्ध है एवं द्वितीय सावन शिवरात्रि के नाम से जानी जाती है। यह त्यौहार भगवान शिव-पार्वती को समर्पित है, इस दिन भक्त भगवान शिव के प्रतीक शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ा कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं ।
यह लोकप्रिय हिंदू व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। सही विधि से किया जाने वाला व्रत या पूजा ,उत्तम फल देती है , तो आइए जानते हैं क्या है त्रयोदशी व्रत करने की सही विधि और अनुष्ठान।
संबंधित अन्य नाम | मासिक शिवरात्रि, त्रयोदशी |
सुरुआत तिथि | कृष्णा त्रयोदशी |
कारण | भगवान शिव का पसंदीदा दिन। |
उत्सव विधि | व्रत, पूजा, व्रत कथा, भजन-कीर्तन, गौरी-शंकर मंदिर में पूजा, रुद्राभिषेक। |
त्रयोदशी व्रत कब है? – Trayodashi Vrat Kab Hai?
मंगलवार, 18 अप्रैल 2023
त्रयोदशी तिथि : 17अप्रैल 2023 3:46 PM – 18 अप्रैल 2023 1:27 PM
त्रयोदशी व्रत की पूजा विधि क्या है?
❀ त्रयोदशी तिथि पर सुबह उठकर स्नान करें एवं सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए ।
❀ भगवान् के सामने द्वीप प्रज्वलित कर व्रत का संकल्प लें ।
❀ पूरे दिन उपवास करने के उपरान्त प्रदोष काल में किसी मंदिर में जाकर पूजा करें ।
❀ यदि आप मंदिर नहीं जा सकते हैं तो पूजा स्थल या घर के साफ-सुथरे स्थान पर शिवलिंग स्थापित कर दूध, दही, शहद, घी, बेलपत्र और गंगाजल से अभिषेक करना चाहिए।
❀ पूजा और अभिषेक के दौरान शिव जी के पंचाक्षरी मंत्र नमः शिवाय का जाप करते रहें।
शिवतेरस
हिंदू पंचांग के अंतर्गत प्रत्येक माह के तेरहवें दिन को संकृत भाषा में त्रियोदशी कहा जाता है। प्रत्येक माह में कृष्ण और शुक्ल दो पक्ष होते हैं अतः त्रियोदशी भी एक माह में दो बार आती है। लेकिन कृष्ण पक्ष के तेरहवें दिन आने वाली त्रियोदशी भगवान शिव की अति प्रिय है अतः इस तिथि को शिव के साथ जोड़ कर साधारण भाषा में शिवतेरस कहा जाने लगा।