श्री वैद्यनाथ शिवलिंग को ज्योतिर्लिंगों की सम्पूर्ण सूची में नौवां स्थान माना गया है। भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मंदिर ‘वैद्यनाथधाम’ कहलाता है, जो झारखण्ड प्रांत, पूर्व में बिहार प्रांत के सन्थाल परगना के दुमका जनपद में स्थित है।
पुराणों में ‘परल्यां वैद्यनाथं च’ इसका उल्लेख है, जिससे कुछ लोग वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को ‘परलीग्राम’ मानते हैं। ‘परलीग्राम’ निज़ाम हैदराबाद क्षेत्र में है और वहां स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को लोग मानते हैं। इस स्थान से थोड़ी दूरी पर ‘श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग’ स्थित है, जिसका मंदिर रानी अहिल्याबाई द्वारा बनवाया गया था।
शिव पुराण के अनुसार, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का महत्वपूर्ण कथा है, जो इसे नौवां ज्योतिर्लिंग बनाती है। यहां तक कि देवताओं ने उसकी प्रतिष्ठा की और इसे ‘वैद्यनाथ’ कहकर स्वर्गलोक को प्रस्थान किया।
कथा
वैद्यनाथ लिंग के स्थापना से जुड़ी एक कहानी है, जिसमें कहा गया है कि एक समय राक्षसराज रावण ने हिमालय पर स्थिर होकर भगवान शिव की अत्यंत तपस्या की। उसने अपने नौ सिरों को काटकर शिवलिंग पर चढ़ाया। इस क्रिया में उसने अपने सिरों को शिवलिंग पर चढ़ाते हुए भगवान की पूजा की, लेकिन जब उसने दसवें सिर को काटने का प्रयास किया, तो भगवान शिव प्रसन्न हो गए। वे रावण के सिरों को पहले की ही भाँति कर दिए। उन्होंने रावण से वर मांगने के लिए कहा, और रावण ने शिव से प्राप्त अनुमति के साथ शिवलिंग को ले जाने की प्रार्थना की। शिव ने रावण को अनुमति दी, लेकिन उन्होंने उसे चेतायत किया कि यदि वह शिवलिंग को ले जाते समय रास्ते में गिरा देते हैं, तो वहीं स्थापित हो जाएगा। रावण ने शिवलिंग को लेकर रास्ते में चलते हुए लघुशंका का अनुभव किया और उसने लिंग को एक अहीर के हाथ में छोड़ दिया, जिससे वह वहीं स्थिर हो गया। रावण ने प्रयास किया लेकिन असफल रहा, और वह निराश होकर खाली हाथ लौटा।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मनुष्यों को इच्छा के अनुसार फल प्रदान करने में सक्षम है। इस धाम में एक विशाल सरोवर है, जिसमें भक्तगण स्नान करते हैं। यहां तीर्थपुरोहितों के हज़ारों घाट हैं, जिनकी आजीविका मंदिर से ही चलती है। पण्डा लोग एक गहरे कुएँ से जल लेकर ज्योतिर्लिंग को स्नान कराते हैं और अभिषेक के लिए सैकड़ों घड़े जल निकालते हैं। यहां का मेला सावन के महीने में होता है और भक्तगण दूर-दूर से कांवड़ में जल लेकर बाबा वैद्यनाथ धाम आते हैं। यहां अनेक रोगों से छुटकारा पाने के लिए भी लोग बाबा का दर्शन करने आते हैं और इस ज्योतिर्लिंग को आराधना करने से उन्हें शांति मिलती है।
कोटि रुद्र संहिता के अनुसार
श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा श्री शिव महापुराण के कोटि रुद्र संहिता में इस प्रकार वर्णित है:
राक्षसराज रावण, जो कि अभिमानी और घमंडी थे, किसी दिन कैलास पर्वत पर भगवान शिव की आराधना कर रहे थे। बहुत दिनों तक तपस्या करने के बावजूद भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए, तब रावण ने अलग विधि से तपस्या शुरू की। उसने हिमालय पर्वत से दक्षिण की ओर एक गड्ढा बनाया और उसमें अग्नि की स्थापना की। रावण ने भगवान शिव को भी उसी स्थान पर स्थापित किया और कठोर साधना करने लगा।
उसने गर्मी के दिनों में पाँच अग्नियों के बीच में बैठकर पंचाग्नि सेवन किया, वर्षाकाल में खुले मैदान में सोता था, और सर्दियों में जल में खड़ा होकर साधना करता था। यह तीनों विधियाँ उसकी तपस्या थीं, लेकिन भगवान शिव अप्रसन्न रहे। तब रावण ने अपने शिरों को काटकर शिव की पूजा करना शुरू किया। उसने एक-एक करके अपने नौ सिरों को काट दिया, लेकिन जब उसने आखिरी सिर को काटने का इरादा किया, तब भगवान शिव ने उस पर प्रसन्नता दिखाई और सभी सिरों को पुनः मिला दिया।
भगवान शिव ने रावण को अनुपम बल और पराक्रम प्रदान किया और उससे अपनी इच्छा के अनुसार वर मांगने के लिए कहा। इसके बाद रावण ने शिवलिंग को अपनी राजधानी लंका ले जाने का निर्णय किया, परंतु रास्ते में मूत्रोत्सर्ग की प्रबल इच्छा हो गई। रावण ने शिवलिंग को पकड़ा और स्वयं पेशाब करने के लिए बैठ गया, लेकिन उसे मूत्र को रोकने में सफलता नहीं मिली। असमर्थ रावण ने शिवलिंग को ग्वाल के हाथ में समर्पित कर दिया और शिवलिंग पृथ्वी पर स्थिर हो गया। इस प्रकार श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ और देवताओं ने उसे पूजन किया। इसलिए वैद्यनाथधाम में भक्तों की भीड़ दिखाई पड़ती है जो रोग मुक्ति और दर्शन के लिए आते हैं।
अन्य प्रसंग-1
एक अन्य प्रसंग के अनुसार ब्रह्मा के पुत्र पुलस्त्य (सप्त ऋषियों में से एक) की तीन पत्नियाँ थी।पहली से कुबेर, दूसरी से रावण और कुंभकर्ण, तीसरी से विभीषण उत्पन्न हुए थे। रावण ने बल प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की, जिसके परिणामस्वरूप शिव ने उसे एक शिवलिंग लेकर अपनी नगरी ले जाने की अनुमति दी। शिव ने कहा कि इसे मार्ग में पृथ्वी पर रख देने पर यहीं स्थापित हो जाएगा। लेकिन रावण ने लिंग को बहुत भारी होने के कारण रखा, और इसे वहीं पर स्थापित करना पड़ा। इस रूप में रावण ने वैद्यनाथ शिवलिंग का प्रादुर्भाव किया, जो देवताओं ने पूजा की। इसके बाद रावण को लिंग को अपनी नगरी तक नहीं ले जाया जा सका। इस प्रसंग के अन्य हिस्सों में बताया गया है कि रावण का तीनों लिंगों के साथ एक और प्रसंग जुड़ा है, जिसमें वैद्यनाथ, बैजनाथ, और चन्द्रभाल नामक लिंग उपस्थित हैं।
अन्य प्रसंग-2
शिव पुराण में कई ऐसे आख्यान हैं जो बताते हैं कि शिव वैद्यों के नाथ हैं। कहा गया है कि शिव ने रौद्र रूप धारण कर अपने ससुर दक्ष का सिर त्रिशुल से अलग कर दिया। बाद में जब काफ़ी विनती हुई तो बाबा बैद्यनाथ ने तीनों लोकों में खोजा पर वह मुंड नहीं मिला। इसके बाद एक बकरे का सिर काट कर दक्ष के धड़ पर प्रत्यारोपित कर दिया। इसी के चलते बकरे की ध्वनि – ब.ब.ब. के उच्चरण से महादेव की पूजा करते हैं। इसे गाल बजा कर उक्त ध्वनि को श्रद्धालु बाबा को खुश करते हैं। पौराणिक कथा है कि कैलाश से लाकर भगवान शंकर को पंडित रावण ने स्थापित किया है। इसी के चलते इसे रावणोश्वर बैद्यनाथ कहा जाता है। यहां के दरबार की कथा काफ़ी निराली है।